Editorial: पराली पर फिर घमासान शुरू, क्या यह दिक्कत कभी सुलझेगी

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The fight over stubble has started again

The fight over stubble has begun again, will this problem ever be solved:साल का आखिर आते ही एक समस्या पूरे उत्तर भारत को  परेशान करने लगती है। यह समस्या होती है धान के अवशेष यानी उसकी पराली की। पंजाब-हरियाणा के खेतों में धान की फसल कट कर मंडियों में पहुंचा दी जाती है और किसान अगली फसल की तैयारी में जुट जाते हैं। इससे पहले वे धान की पराली को आग लगा कर उसे खेत में ही नष्ट करने की कोशिश करते हैं, बेशक वे इसमें सफल हो जाते हैं, लेकिन उसके जलने से जो धुआं आसमान में मंडराता है, वह एनसीआर की आबोहवा को दमघोंटू बना देता है। इसके बाद की स्थिति यह होती है कि हर जगह इसकी चर्चा होती है, सरकारों से जवाब मांगा जाता है और वे आपस में ही एक-दूसरे पर आरोप लगाती हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट जोकि पहले ही अनेक बार इस मामले के समाधान के आदेश दे चुका है, फिर सक्रिय हो जाता है और सरकारों से जवाब मांगा जाने लगता है। इस बार फिर सर्वोच्च अदालत ने इस पर नाखुशी जताई है कि सरकारें पराली को जलाने से रोकने में नाकामयाब हो रही हैं। आखिर यह स्थिति कब तक चलेगी?

गौरतलब है कि पंजाब और हरियाणा में इस समय खुलेआम पराली को जलाया जा रहा है और सरकारों की ओर से इसकी रोकथाम के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है। हरियाणा सरकार की ओर से मुख्य सचिव स्तर पर इसके निर्देश दिए गए हैं कि पराली को जलाने से रोकने के लिए स्थानीय अधिकारी काम करें। बेशक, इस संबंध में काम हो भी रहा है, लेकिन फिर भी चोरी-छिपे किसान अपने खेतों में पराली को आग लगाकर घर आ जाते हैं, अगले दिन तक वह जलकर राख हो चुकी होती है।

किसान खुद इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं कि ऐसा करके पर्यावरण को हो रहे नुकसान को रोका जाए। यह भी खूब है कि जब सरकार किसानों को पराली जलाने से रोकने को कहती है तो उनका तर्क होता है कि वे फिर किस प्रकार पराली का प्रबंधन करें। गौरतलब यह भी है कि पराली को ठिकाने लगाने के उपायों पर आने वाले खर्च को उठाने के लिए भी कोई तैयार नहीं हो रहा।

अगर पंजाब की बात करें तो पराली जलाने के मामले बढ़ना चिंताजनक है, यह सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद हो रहा है कि किसान इस बात को समझ नहीं पा रहे। आजकल धान की कटाई के बाद नई फसल के लिए जमीन तैयार करने का कार्य जारी है, लेकिन पराली का समुचित प्रबंधन नहीं होने के कारण किसान के पास उसे जलाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता। प्रदेश में राज्य सरकार की ओर से पराली के प्रबंधन के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं, लेकिन किसान हैं कि इसकी परवाह किए बगैर पराली को जलाकर अपनी ड्यूटी की इतिश्री कर लेते हैं।

मीडिया में लगातार ऐसी रिपोर्ट आ रही हैं, जिनमें यह बताया जा रहा है कि पंजाब में पराली को खेत में ही जलाया जा रहा है और इससे भारी प्रदूषण फैल रहा है। वैसे पड़ोसी राज्य हरियाणा में भी पराली को जलाने के मामले सामने आ रहे हैं, लेकिन फिर भी तुलनात्मक रूप से पंजाब में इनकी अधिकता परेशान करने वाली है। उसमें भी चिंताजनक यह है कि बीते वर्ष की तुलना में इस वर्ष इन मामलों में इजाफा देखा जा रहा है।

एनजीटी की खंडपीठ का यह भी कहना है कि किसानों का पक्ष भी लिया गया है, जिसमें उनका कहना है कि वे खुद पराली जलाना नहीं चाहते, लेकिन उन्हें इसका विकल्प नजर नहीं आता। अब बेशक, एनजीटी की ओर से यह दावा किया जा रहा है कि पराली जलाने के मामले बढ़े हैं, लेकिन पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने रिपोर्ट दी है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस बार पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है।  वास्तव में अधिकारियों को जमीनी हकीकत के मुताबिक अपनी रिपोर्ट बनानी होगी।

यह सच है कि सभी किसान पराली जलाने में शामिल नहीं होते, लेकिन यह भी सच है कि ज्यादातर के पास इसका कोई समुचित उपाय नहीं है कि पराली का प्रबंधन किस प्रकार किया जाए। वे उसे न अपने घर ले जा सकते हैं और न ही उसे बेचने आदि का प्रावधान है, तब उसके निपटान का एकमात्र उपाय यही बचता है कि खेत में उसे आग लगा दी जाए। वास्तव में पर्यावरण संरक्षण केवल मात्र सरकारों की जिम्मेदारी नहीं है, यह हर नागरिक की भी जरूरत है। पराली जलाना एक बहुत बड़ा मुद्दा है। अगर यह मीडिया की सुर्खियों में आता है तो इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। सरकार का तंत्र भी इतनी नजर नहीं रख पाएगा, जितनी ग्राम पंचायतें यह काम कर सकती हैं। सरकारों को इस संबंध में पंचायतों की भूमिका को प्रभावी बनाना होगा, वहीं पराली के समुचित प्रबंधन पर भी काम करना होगा। 

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